डॉ. ई. जीपकीस (1950-54)
डॉ. ई. जीपकीस संस्थान के पहले निदेशक तथा संस्थापक सदस्यों में से एक थे । उन्होंने भवन संरचना एवं आधारभूत प्रयोगशालाओं का निर्माण करवाया तथा प्रयोगशाला को चालू किया ।
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प्रो. एस. आर. मेहरा (1955-68)
दूरदृष्टि रखने वाले प्रो. मेहरा ने सीआरआरआई के आरंभिक वर्षों के दौरान सीआरआरआई का नेतृत्त्व किया, इसे प्रतिष्ठापूर्ण स्थान दिलाया तथा इसकी भावी उन्नति के लिए आधारशिला रखी । उनमें सही कार्य के लिए सही व्यक्ति का चुनाव करने की दक्षता थी । वे एक कुशल प्रशासक थे एवं सबको प्रेरित करते रहते थे उन्होंने देश के लिए महामार्ग अनुसंधान बोर्ड बनाने का विचार रखा । नवीन सड़क प्रद्यौगिकियों को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने भारत सरकार की केंद्रीय मूल्याकंन समिति की स्थापना में सहयोग दिया । साठवें दशक के आरंभिक वर्षो में उन्होंने विभिन्न स्तर के अभियंताओं के लिए पुनश्चर्या एवं प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू करवाए । उन्होंने सड़कों के निर्माण हेतु उन्नत यंत्रों एवं गुणवत्ता पर बल दिया।
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डॉ. बी. एच. सुब्बाराजू (1968-77)
डॉ. बी. एच. सुब्बाराजू ने स्थलशोध कार्यक्रम करने की महत्ता पर बल दिया । उनके सेवा काल के दौरान सुनम्य कुट्टिम निष्पादन अध्ययन, कंक्रीट कुटि्टम तापमान अंतरात्मक अध्ययन, कंक्रीट कुटि्टम के डिजाइन संबंधित अध्ययन, सीमेंट कंक्रीट कुट्टिमों पर डामरीय उपरिशायी संबंधित अध्ययन, कंक्रीट कुट्टिम हेतु बंधयुक्त कंक्रीट उपरिशायी आदि अध्ययन सम्पन्न किए गए । उनके द्वारा भारी प्रशिक्षण संस्तर, चालीस टन अर्द्धसचल भार ढांचा सचल प्रयोगशाला वाहन जैसी नयी सुविधाएं उपलब्ध करायी गईं । साठ के दशक में कंक्रीट धावन पथ निर्माण परियोजनाओं में उन्होंने संस्थान का गुणवत्ता नियंत्रण निवेश सुस्थापित किया । 1961-62 में संस्थान के परिसर में उनके पर्यवेक्षण के अंतर्गत निर्मित यह संरचना आज भी उनके अभियांत्रिकी कौशल एवं गुणवत्ता का साक्ष्य है। ग्रामीण रोजगार हेतु नगद योजना के अधीन निर्मित ग्रमीण सड़कों के मूल्यांकन तथा उत्तर पूर्व क्षेत्र में राज्य लोक निर्माण विभाग की समस्याओं का अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण कार्य उनके मार्गदर्शन में सम्पन्न किए गए ।
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प्रो. सी. जी. स्वामीनाथन (1977-83)
प्रो. सी. जी. स्वामीनाथन सुनम्य कुट्टिम तथा डामरीय सामग्रियों के विशेषज्ञ थे । देश में डामरीय कुट्टिम के निर्माण तथा मिश्रण डिजाइन के महत्व को रेखांकित करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनके समय में ‘’कॉम्पिरीहेन्सिव ट्रैफिक एंड ट्रांसर्पोटेशन स्टडी फॉर बोम्बे मैट्रोपॉलीटन रीजन‘’, ‘’रोड यूजर कॉस्ट स्टडी इन इंडिया‘’ जैसे बृहद एवं अत्यंत प्रतिष्ठित अध्ययन संपन्न किए गए तथा इन अध्ययनों के आयोजन, संसाधनो के संयोजन एवं प्रगति की समीक्षा के लिए उन्होंने सक्रिय भाग लिया ।
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डॉ. एम.पी. धीर (1983-89)
डॉ. एम.पी. धीर कुटि्टम सतह अभिलक्षणों के मूल्यांकन तथा सामग्री अभिलक्षण के विशेषज्ञ थे । सतह अभिलक्षणों के बेहतर मॉनीटरन तथा आंकड़ा संग्रह के लिए उन्होंने अनेक उपकरण का संशोधन तथा उन्नयन किया । उनके सेवाकाल के दौरान राष्ट्रीय महामार्ग जालतंत्र की ज्यामिति एवं सतह अभिलक्षण संबधी अध्ययन, धुरी भार संबंधी अध्ययन, वाहनों के क्षैतिज स्थापन संबंधी अध्ययन, यातायात अनुकरण मॉडलिंग संबंधी अध्ययन, सड़क प्रौद्योगिेकी – भावी आवश्यकताएं संबंधी अध्ययन आदि अध्ययन संपादित किए गए । उनके मार्गदर्शन में राष्ट्रीय विमानपत्तनों के धावन पथ कुट्टिमो का संरचनात्मक मूल्यांकन पूरा किया गया ।
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प्रो. डी. वी. सिंह (1992 -96)
प्रो. डी. वी. सिंह शिक्षा के क्षेत्र से संबंध रखते थे तथा उन्होंने विश्व के सड़क एवं पर्यावरण में अग्रणी शोध संस्थानों के साथ संपर्क बनाने पर विशेष बल दिया । उन्होंने इंटरनेशनल रोड फेडरेशन (आइआरएफ), वर्ल्ड रोड एसोसिएशान (प्यार्क), यूएस स्ट्रटेजिक हाईवे रिसर्च प्रोग्राम ( एसएचआरपी ), यूएस फेडरल हाईवे एडमिनस्ट्रेशन ( एफएचडब्लूए), आस्ट्रेलियन रोड रिसर्च बोर्ड (एआरआरबी) के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाया तथा विश्व बैंक सहित अन्य अनेक संगठनों के साथ संपर्क स्थापित किया । उनकी पहल से भारत प्यार्क के वर्ल्ड इनफारमेशन नेटवर्क ( विन ) का संस्थापक सदस्य बना और भारत में सीआरआरआई को पहला विन केंद्र बनाया गया । उन्होंने संस्थान में अनेक प्रबंध विकास गतिविधियाँ आरंभ की । उन्होंने संस्थान के कंप्यूटर केंद्र को ‘’ कंप्यूटर एवं सड़क आसूचना केंद्र ( क्रिक ) ‘’ के रूप में परिवर्तित किया । उन्होंने विनिर्देशों, सामग्रियों / मिश्रणों एवं डिजाइनों की उपयुक्तता के त्वरित परीक्षण हेतु राष्ट्रीय त्वरित भार परीक्षण सुविधा की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किया ।
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प्रो.ए.के. गुप्ता (1996-97)
प्रो.ए.के. गुप्ता ख्याति प्राप्त शिक्षाविद थे जिन्होंने अल्प अवधि के लिए संस्थान की सेवा की । उन्होंने सीआरआरआई में सुविज्ञ परिवहन प्रणाली (आइटीएस ) पर शोध आरंभ करवाया तथा विश्व बैंक से पारस्परिक विचार विनिमय को बढ़ाया । प्रो.गुप्ता ने 'सीआरआरआई विजन 2000 : एन एक्शन प्लान' दस्तावेज तैयार करवाया । नवीन क्षेत्रों में शोधकार्य आरंभ करवाने की उनकी योजना थी लेकिन दुर्भाग्य से नवम्बर 1997 में उनकी मृत्यु हो गई ।
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प्रो. पी. के. सिकदर (1998-2004)
प्रो.पी.के. सिकदर भी शैक्षणिक संस्था से आए थे और उन्होंने संस्थान के वैज्ञानिकों में शोधात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। वे समय का सही मूल्य पहचानते थे तथा उन्होंने अधिकतम लाभ के लिए ढांचे के पुनर्गठन जैसे प्रयोग भी किए । उनके कार्यकाल के दौरान संस्थान ने वर्ष-प्रतिवर्ष अधिकतम बाह्य नकदी प्रवाह अर्जित किया तथा अनेक शोध एवं सम्मेलन पत्रों का प्रकाशन कराया । प्रो.पी.के. सिकदर ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) – बारह मासी सड़कों के द्वारा सभी ग्रामीण अधिवासों को महामार्ग से जोड़ने की परियोजना हेतु प्राथमिक दस्तावेज तैयार कराया । उनके कार्यकाल के दौरान अनेक उल्ल्ोखनीय एवं महत्वपूर्ण परियोजनाओं यथा स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, एचडीएम – 4 के प्रशिक्षण एवं प्रसरण, दिल्ली मेट्रो जालतंत्र (डीपीआर), सड़क उपभोक्ता लागत अध्ययन का उन्नयन, भूस्खलन एवं प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण आदि को पूरा किया गया तथा उड़न राख मिशन में संस्थान का योगदान शिखर को पहुंचा । अधुनातन एवं अद्यतन उपस्करो सहित अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं का आधुनिकीकरण तथा स्थानीय क्षेत्र जालतंत्र, इंटरानेट, वेबसाइट, जीआइएस प्रयोगशाला की स्थापना के द्वारा कंप्यूटर केंद्र का बेहतर उपयोग उनकी कुछ उल्ल्ोखनीय उपलब्धियॉं है ।
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डॉ. पी. के. नन्दा (2004-2007 )
डॉ. पी. के. नन्दा कुट्टिम डिजाइन, सामग्री एवं मूल्यांकन के विशेषज्ञ थे । उन्होंने 32000 कि.मी. राष्ट्रीय महामार्ग हेतु धुरी भार परिदृश्य तथा वाहन क्षति कारक (बीडीएफ) संबंधी अध्ययनों का समन्वय किया । सड़कों के कार्यात्मक सुधार तथा अनुरक्षण आधारित आरूढ़ गुणवत्ता मॉडल के विकास के लिए दिशानिर्देश तैयार करने में सहयोग दिया । कुट्टिम अवहृास मॉडल के विकास हेतु दीर्घावधि कुट्टिम निष्पादन अध्ययन से भी वे संबंधित रहे। एचडीएम – 4 के प्रयोग से कुट्टिम प्रबंध प्रणाली तैयार करने में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया । दिल्ली की सड़कों के सुधार हेतु मास्टर प्लान से संबंधित अघ्ययन से भी वे जुड़े रहे । उनके शोध क्षेत्रों के अंतर्गत सड़क मिलावे का पॉलिश अभिलक्षण, एफडबल्यूडी के प्रयोग से कुट्टिम का संरचनात्मक मूल्यांकन, ला-कोरक्स डिफ्लेक्टोग्राफ, डाइनाइमिक प्लेट भार परीक्षण उपस्कर, रेतीले भूभाग हेतु पूर्व ढालित खंड कुट्टिम प्रणाली, परस्पर संबद्ध खंड कुट्टिम प्रणाली, ढुलाई मार्ग का सुधार एवं डिजाइन, धावन पथ कुट्टिमों का संशोधित डिजाइन आदि सम्मिलित है ।
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डॉ विक्रम कुमार (2007-2008)
डॉ विक्रम कुमार के कुशल नेतृत्व में पूरे देश में राष्ट्रीय महामार्ग आयोजन और प्रबंधन हेतु महामार्ग सूचना प्रणाली पर आधारित भू-आरेखिए सूचना प्रणाली (जीआइएस) के विकास पर अध्ययन प्रारंभ किए गए । उच्च गति सड़क गलियारे के अनुरक्षण, आयोजना और बजट हेतु प्रबंध प्रणाली के विकास पर एक अन्य महत्वपूर्ण अध्ययन प्रारंभ किया गया । यह प्रणाली अभियंताओं और निर्णय / नीति निर्माताओं को सड़क जालतंत्र के अनुरक्षण के लिए निधि आवश्यकताओं की पूर्व कल्पना करने में योग्य बनाएगी ताकि सड़कों को सेवा योग्यता के अपेक्षित स्तर तक लाया जा सके । यह प्रणाली खराब प्रकार से अनुरक्षित सड़कों के संबंध में प्रतिवर्ष होने वाली व्यर्थ हानियों के न्यूनीकरण में भी सहायता करेगी । यह सीमित स्रोतों की दृष्टि से अनुरक्षण कार्यों को प्राथमिकता देने और विवेकपूर्वक अनुरक्षण निधि के आबंटन में सड़क प्राधिकरण के लिए एक सशक्त साधन है ।
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डॉ शुभमय गंगोपाध्याय(2009-2015)
डॉ शुभमय गंगोपाध्याय ने दिनांक 29 मई, 2009 को संस्थान के निदेशक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया तथा नवंबर 30, 2015 को सेवानिवृत्त हुए । डॉ गंगोपाध्याय ने सीआरआरआई में वैज्ञानिक ‘बी’ के रूप में जून 1979 में अपने कैरियर की शुरूआत की तथा अगस्त 2008 से कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य आरंभ किया । उनकी विशेषज्ञता क्षेत्र के अंतर्गत यातायात इंजीनियरी, परिवहन परियोजना एवं माडलिंग, यातायात प्रवाह सिद्धांत, यातायात सुरक्षा व परिवहन तथा पर्यावरण अंत:क्रिया आदि सम्मिलित हैं । डॉ गंगोपाध्याय ने सीआरआरआई में अपने सेवाकाल के दौरान अनेक शोधपत्रों का प्रकाशन किया तथा एमटैक एवं पीएचडी शोध-प्रबंध के लिए मार्गदर्शन किया । भारत के अनेक महानगरों सहित विभिन्न शहरों के लिए अनेक परिवहन अध्ययनों को संपन्न कराने में भी उनका योगदान रहा । निदेशक के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान संस्थान ने वहनीय परिवहन प्रणाली, महामार्ग क्षमता मैनुअल एवं चालक अनुकार प्रयोगशाला का विकास, एपीटीएफ के पुन:प्रवर्तन, ग्रामीण सड़कों में उड़न राख के प्रयोग हेतु विनिर्देशों का विकास, चल सेतु अन्वेषण एकक का विकास व लाइसेंसीकरण तथा प्रसार संधि परीक्षण सुविधाओं का डिजाइन व विकास आदि 12वीं पंचवर्षीय योजना परियोजनाओं का आरंभ देखा । इसके साथ-साथ, स्थानीय रूप से उपलब्ध एवं सीमांत सामग्रियां, नवीन एवं वैकल्पिक कुट्टिम सामग्रियां एवं मूल्यांकन, सेतु तथा सड़क प्रबंधन प्रणाली का विकास, सड़क सुरक्षा लेखा परीक्षा परियोजनाओं तथा चालक अनुकार प्रयोगशाला के विकास के क्षेत्रों में भी अनेक परियोजनाएं संपन्न की गई । संस्थान के निदेशक के रूप में उन्होंने शोध पत्रों के प्रकाशन तथा संस्थान के ईसीएफ में वृद्धि के लिए अथक प्रयास किया । छह वर्षों के उनके सेवा काल के दौरान प्रयोगशालाओं तथा अन्य अवसंरचनात्मक सुविधाओं के जार्णोद्धार गतिविधियों को आरंभ कर उन्हें पूर्ण किया गया । वर्ष 2010 में सीबीआरआई के साथ संयुक्त रूप से शुरू की गई एसीएसआईआर गतिविधियों में उनके कार्यकाल के दौरान उल्लेखनीय प्रगति हुई ।
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