“जियोसिंथेटिक्स का प्रयोग कर ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कार्बन फुटप्रिंट और सस्टेनेबिलिटी इवैल्यूएशन” - वर्कशॉप प्रोसीडिंग्स रिपोर्ट

"जियोसिंथेटिक्स का प्रयोग कर ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कार्बन फुटप्रिंट और सस्टेनेबिलिटी इवैल्यूएशन"

दिनांक: 1–2 दिसंबर 2025

स्थान: सीएसआईआर – केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

इंटरनेशनल जियोसिंथेटिक्स सोसाइटी (आईजीएस) – इंडिया चैप्टर ने सीएसआईआर-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के साथ मिलकर, 1 और 2 दिसंबर 2025 को सीआरआरआई कैंपस, नई दिल्ली में "जियोसिंथेटिक्स का प्रयोग कर ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कार्बन फुटप्रिंट और सस्टेनेबिलिटी इवैल्यूएशन" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया। वर्कशॉप में प्रख्यात जियोटेक्निकल विशेषज्ञ, शिक्षाविद, इंडस्ट्री प्रोफेशनल, पॉलिसी स्टेकहोल्डर और युवा शोधार्थी ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सस्टेनेबल, लो-कार्बन सॉल्यूशन पर बातचीत करने के लिए एक साथ एकत्रित हुए।

उद्घाटन सत्र

उद्घाटन सत्र में कई प्रख्यात व्यक्ति शामिल हुए, जिनमें डॉ. आर. के. भंडारी, पूर्व निदेशक, सीबीआरआई (गेस्ट ऑफ़ ऑनर); श्री एल. पी. पाधी, सीजीएम (टेक्निकल), एनएचएआई (मुख्य अतिथि); प्रो. टी. शिवकुमार बाबू, सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर, आईआईएससी, और प्रेसिडेंट, आईजीएस इंडिया चैप्टर; प्रो. मनोरंजन परिड़ा, निदेशक, सीएसआईआर-सीआरआरआई; डॉ. कंवर सिंह, मुख्य वैज्ञानिक व प्रमुख, भूतकनीकी अभियांत्रिकी प्रभाग, सीआरआरआई; सुश्री डोला रॉयचौधरी, वाइस-प्रेसिडेंट, आईजीएस इंडिया चैप्टर; और डॉ. पार्वती जी. एस., प्रधान वैज्ञानिक, भूतकनीकी अभियांत्रिकी प्रभाग, सीआरआरआई एवं ऑर्गेनाइज़िंग सेक्रेटरी शामिल थे। वक्ताओं ने भारत के तेज़ी से बढ़ते हाईवे सेक्टर में सस्टेनेबिलिटी, लाइफ़ साइकिल असेसमेंट, और कार्बन-कॉन्शियस डिज़ाइन के बढ़ते महत्व पर ज़ोर दिया।

तकनीकी सत्र

पहला दिन

प्रो. टी. शिवकुमार बाबू ने रिटेनिंग वॉल्स के लाइफ साइकिल असेसमेंट (एलसीए) पर जानकारी दी, जिसमें सीआरआरआई में डिज़ाइन की गई और ओखला फ्लाईओवर पर लगाई गई पहली जियोसिंथेटिक रीइन्फ़ोर्स्ड सॉइल वॉल भी शामिल है। उन्होंने एलसीए को रेगुलर जियोटेक्निकल डिज़ाइन प्रैक्टिस में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया। आईआईटी इंदौर के डॉ. रामू बादिगा ने "जियोसिंथेटिक-रीइन्फ़ोर्स्ड फ़्लेक्सिबल पेवमेंट्स का कार्बन फ़ुटप्रिंट इवैल्यूएशन" पर एक व्याख्यान दिया। उन्होंने नेचुरल एग्रीगेट माइनिंग के एनवायर्नमेंटल असर पर चर्चा की और पेवमेंट डिज़ाइन गाइडलाइंस में मटीरियल इनपुट पर यूनिट ऑफ़ फ़ंक्शन (एमआईएफ) और लाइफ़ साइकिल रिसोर्स (एलसीआर) इंडिकेटर्स को अपनाने के महत्व पर बल दिया। टकफ़ैब इंडिया के श्री सौरभ व्यास ने सस्टेनेबल इंफ़्रास्ट्रक्चर में जियोसिंथेटिक्स की भूमिका पर बात की और आईएसओ 14025 स्टैंडर्ड्स के हिसाब से क्रैडल-टू-ग्रेव एलसीए पर आधारित जियोसिंथेटिक प्रोडक्ट्स के लिए एनवायर्नमेंटल प्रोडक्ट डिक्लेरेशन (ईपीडी) के महत्व पर बल दिया।

सीएसआईआर – सीआरआरआई से डॉ. शिक्षा स्वरूपा कर ने हाईवे डेवलपमेंट में कार्बन सेविंग्स को क्वांटिफाई करने पर एक केस स्टडी प्रस्तुत की, जिसमें पूरे प्रोजेक्ट कार्बन फुटप्रिंट पर फॉरेस्टेशन और डिफॉरेस्टेशन के बड़े असर पर प्रकाश डाला गया। मैकाफेरी के डॉ. रत्नाकर महाजन ने एमएसई (MSE) दीवारों और कन्वेंशनल कंक्रीट दीवारों के एक कम्पेरेटिव एलसीए (LCA) पर चर्चा की, जिसमें सोशल, एनवायर्नमेंटल और इकोनॉमिक पहलुओं में सस्टेनेबिलिटी पर ज़ोर दिया गया। सीएसआईआर – सीआरआरआई से डॉ. दीपा एस. ने पेवमेंट रिहैबिलिटेशन स्ट्रेटेजी के लाइफ साइकिल असेसमेंट पर एक विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसमें कन्वेंशनल हॉट मिक्स एस्फाल्ट की तुलना कोल्ड रीसाइक्लिंग तरीकों से की गई।

दूसरा दिन

वाटरशेडजियो (यूएसए) की श्री रुतु जोशी ने जियोसिंथेटिक्स का प्रयोग कर ग्रीनहाउस गैस रिडक्शन पर एक ऑनलाइन व्याख्यान दिया, जिसमें ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर में कार्बन मिटिगेशन के लिए लाइफ-साइकिल-बेस्ड एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट इवैल्यूएशन के महत्व पर प्रकाश डाला गया। जीक्यूब कंसल्टिंग की सुश्री डोला रॉयचौधरी ने जियोसिंथेटिक सिस्टम के लिए सस्टेनेबिलिटी परफॉर्मेंस इंडिकेटर्स के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें फंक्शनल यूनिट-बेस्ड इम्पैक्ट असेसमेंट, ड्यूरेबिलिटी और सिस्टम-लेवल एफिशिएंसी शामिल हैं। केलर इंडिया के डॉ. तन्मय गुप्ता ने जियोसिंथेटिक्स का प्रयोग कर सस्टेनेबल ग्राउंड इम्प्रूवमेंट टेक्नोलॉजी पर चर्चा की और उनके कार्बन फुटप्रिंट की तुलना पारंपरिक पाइलिंग, वाइब्रो-कम्पैक्शन और वाइब्रो-फ्लोटेशन तकनीकों से की। आईआईटी पलक्कड से डॉ. पी. वी. दिव्या ने जियोसिंथेटिक रीइन्फोर्स्ड सॉइल वॉल्स के सस्टेनेबल और रेजिलिएंट डिज़ाइन पर प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें क्लाइमेट से होने वाली अनिश्चितताओं को परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन में शामिल किया गया।

लोनरिक्स लिमिटेड के श्री अनुकूल सक्सेना ने एनालिटिकल रिजल्ट्स शेयर किए, जिसमें कुट्टिम में जियोसिंथेटिक्स के ऑप्टिमाइज्ड प्रयोग से बिटुमिनस लेयर की मोटाई में 15–30% की कमी और कार्बन एमिशन में 7–24% की कमी दिखाई गई। सुश्री शबाना खान, स्ट्रैटा जियोसिस्टम्स ने पारंपरिक मटीरियल के साथ जियोसिंथेटिक्स के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को मापने और तुलना करने में थर्ड-पार्टी वेरिफाइड ईपीडी (EPDs) के महत्व पर ज़ोर दिया। डॉ. अपूर्वा अग्रवाल, जियोक्वेस्ट इंडिया ने दिखाया कि कैसे जियोसिंथेटिक-बेस्ड रिटेनिंग वॉल सिस्टम पारंपरिक रिजिड वॉल सिस्टम की तुलना में पर्यावरण पर पड़ने वाले भार को काफी कम करते हैं।

कार्यशाला के परिणाम और मुख्य बातें

कार्यशाला में पर्यावरण पर असर को कम करने और संधारणीय (टिकाऊ) ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने में जियोसिंथेटिक्स की अहम भूमिका पर बल दिया गया। भारत के 2070 के नेट-ज़ीरो एमिशन लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, चर्चाओं में इस बात पर बल दिया गया कि कार्बन फुटप्रिंट में कमी को डीपीआर (DPR) के बनाने, डिज़ाइन और कंस्ट्रक्शन प्लानिंग का एक आवश्यक अंग बनना चाहिए। मुख्य निष्कर्षों में शामिल हैं:

• जियोसिंथेटिक्स सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में कुल कार्बन फुटप्रिंट में 15% तक की कमी ला सकते हैं, लेकिन सामग्री और निर्माण के दृष्टिकोण से, यह 90% तक कार्बन फुटप्रिन्ट कम कर सकता है।

• हाईवे डिज़ाइन और प्रोजेक्ट मूल्यांकन में लाइफ साइकिल असेसमेंट (एलसीए) को संस्थागत बनाया जाना चाहिए।

• एनवायरनमेंटल प्रोडक्ट डिक्लेरेशन (EPDs) को पारदर्शी पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के लिए आवश्यक टूल के रूप में पहचाना गया।

कार्यशाला में इस बात पर भी बल दिया गया कि सड़क प्रोजेक्ट्स में सही कार्बन अकाउंटिंग में न केवल एम्बेडेड कार्बन, बल्कि हाईवे निर्माण के दौरान वनों की कटाई, वनस्पति हटाने, ढलान काटने और मिट्टी के काम के कारण होने वाले कार्बन नुकसान पर भी विचार किया जाना चाहिए, ऐसे घटक जिन्हें अक्सर कम आंका जाता है। जियोसिंथेटिक्स और संधारणीय (टिकाऊ) जियोटेक्निकल समाधानों को अपनाने से कच्चे माल के खनन में काफी कमी आ सकती है, हरियाली बनी रह सकती है, और रखरखाव की आवश्यकता को कम करके लंबे समय तक कार्बन को बनाए रखने में सहायता मिल सकती है। आखिर में, चर्चाओं में राष्ट्रीय नीतिगत ढांचों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया जो सड़क निर्माण और रखरखाव में हरित प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करें, और पूरे देश में कम कार्बन, टिकाऊ इंजीनियरिंग प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा दें।

“Carbon Footprint and Sustainability Evaluation for Transportation Infrastructure Using Geosynthetics” Workshop Proceedings Report

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